
राजनीति धूर्तों की प्रिय शरणस्थली है, ऐसा साहित्य के अंग्रेज़ ख़लीफ़ा शेक्सपीयर का कहना है। फिर मेरी क्या मान्यता है और दिन-प्रतिदिन की राजनीति पर क्या टिप्पणी है, ये आप सब से साझा हो, ऐसा देश के सबसे बड़े और मानक समाचार-पत्र ‘दैनिक भास्कर’ की इच्छा है। पर चाहे-अनचाहे मेरी टिप्पणी से भी पहले मुझे अपने जिस बालसखा की महाज्ञानी टीप सुननी ही पड़ती है, वे हैं ‘हाजी पंडित’! चौंकिए नहीं, चूंकि ये सिर्फ निर्लिप्त और तटस्थ भाव से राजनैतिक टिप्पणी भर करते हैं, राजनीतिज्ञ नहीं हैं। इसलिए बचपन के मेरे किसी अन्य राजनीतिज्ञ मित्र की तरह न तो धोखेबाज़ हैं और न ही अवसरवादी।
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